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'दर्द बनाम औरत का दिल' By Jaunsee

  ' दर्द बनाम औरत का दिल' बहते लावे की तरह  फूटता ये दर्द उस ज्वालामुखी से निकल रहा है  जो सदियों से सोया था  इसका नाम 'औरत का दिल' है !  ये समाज के ख़ूबसूरत चेहरे को भद्दी काली राख से ढक देगा  ये बद-सूरत समाज इसी लायक़ है!  #मैं

हारे हुओं का सहारा है उम्मीद

हारे हुओं का सहारा है उम्मीद जीते हुए उम्मीद नहीं किया करते!

'हिज्र के साथी'

'हिज्र के साथी' तुम्हे बिन बताए तुम्हारी आवाज़ जो रिकॉर्ड कर ली थी वो बातें, वो लता, रफ़ी के गाने सेव्ड चैट्स..! मेरे आँसूं, तुम्हारी ग़ज़लें इन सबके साथ साथ ये सितारे जिन्हें देखकर तुम्हारी शक्ल बनाती हूँ ये भी मेरे हिज्र के साथी हैं और हाँ...! इनके बिछड़ने का डर भी नहीं!

एक हसरत थोड़ी पुरानी जंग लगी

एक हसरत थोड़ी पुरानी जंग लगी एक ख़्वाब बिल्कुल ताज़ा खिला हुआ बैठे हुए थे फ़ुरसत में बातें किए जाते थे उस हसरत को ताज़ा ख़्वाब ने ऐसा झांसा दिया ...ऐसा झांसा दिया कि अब वो हसरत जंग लगा पैकर छोड़ नया रूप धरना चाहती है क्या ये मुमकिन है? ऐ ख़्वाब क्या ये वाक़ई मुमकिन है??

'केसरिया बालमा' इक तस्वीर

'केसरिया बालमा' इक तस्वीर जिसे वक़्त ने ज़र्द कर दिया जिसे तकते तकते मेरी आँखें भी ज़र्द हो आईं अब ये ज़र्द रंग मेरे जिस्म में उतर रहा है डॉक्टर कहते हैं,एनीमिया है! इन्हें नहीं मालूम, तुम्हारी केसरिया रंग की कमीज़ वाली तस्वीर मेरी ब्लड रिपोर्ट नार्मल कर देगी तुम भेजोगे न?

उसकी आंखें नैया जैसी

उसकी आंखें नैया जैसी उसकी हर इक बात समन्दर!

उसने कहा ख़ुशबू क़ैद नहीं होगी

उसने कहा ख़ुशबू क़ैद नहीं होगी मैनें इतर बनाया उसने कहा आवाज़ को बांधो तो जानू मैनें रिकॉर्डर ऑन किया! उसने कहा मुझे पकड़ो, छू के दिखाओ मैनें तस्वीरें खींची! अब कहता है, किस्मत बदलो तो बात बने और मैं अकेली इतर में नहाई उसकी तस्वीर को निहारते हुए उसकी आवाज़ सुन रही हूँ!

'वन ओ क्लॉक' @jaunsee

'वन ओ क्लॉक' रात के एक बजे  कुछ अजीब कैफ़ियतें तारी होती हैं  तुम्हे याद करके नदियाँ जारी होती है! काश ! तुम आते इन्हें रोकने,  इनमें बहने पर नहीं !! ये बहती हैं !!  दुपट्टा , तकिया , चादर भिगोती हैं !!!

तुमसे इक मुलाक़ात, इक उम्र थी

तुमसे इक मुलाक़ात, इक उम्र थी मैं मिल के घर लौट आई हूँ ए अच्छे लड़के मेरे पैरहन की ये ख़ुशबू उन आँसुओ की होगी जो तुम्हारे ग़म में बहाए मेरी बन्द आंखों पे तुमने होंटों से जो दवा लगाई उससे कुछ ज़ख़्म उभरे हैं जो खो चुके थे अब ये पैरहन की ख़ुशबू ये ज़ख़्म ही जीने का सामान हैं! #मैं