तुमसे इक मुलाक़ात, इक उम्र थी

तुमसे इक मुलाक़ात, इक उम्र थी
मैं मिल के घर लौट आई हूँ
ए अच्छे लड़के
मेरे पैरहन की ये ख़ुशबू
उन आँसुओ की होगी
जो तुम्हारे ग़म में बहाए
मेरी बन्द आंखों पे
तुमने होंटों से जो दवा लगाई
उससे कुछ ज़ख़्म उभरे हैं
जो खो चुके थे
अब ये पैरहन की ख़ुशबू
ये ज़ख़्म ही जीने का सामान हैं!

#मैं

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