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Showing posts from January, 2020

डिज़ायर

"डिज़ायर" सुबह रंग का लिबास पहने कच्ची इंटों के पार उस दरीचे से झाँकती एक मासूम लड़की  सरसों के खेत में  उड़ती हुई उस तितली को देखती हुई  कुछ सोचती है  तभी शाम रंग का लिबास पहने आ जाते हो तुम!  और अपने नर्म होंठ रख देते हो उसकी पलकों पर और सोच हक़ीक़त में तब्दील हो जाती है जौनसी

तुमसे इक मुलाक़ात, इक उम्र थी

तुमसे इक मुलाक़ात, इक उम्र थी मैं मिल के घर लौट आई हूँ ए अच्छे लड़के मेरे पैरहन की ये ख़ुशबू उन आँसुओ की होगी जो तुम्हारे ग़म में बहाए मेरी बन्द आंखों पे तुमने होंटों से जो दवा लगाई उससे कुछ ज़ख़्म उभरे हैं जो खो चुके थे अब ये पैरहन की ख़ुशबू ये ज़ख़्म ही जीने का सामान हैं! #मैं

रिक़वैस्ट

'रिक़वैस्ट' पिछली मुलाक़ात के आँसूं सूख चुके इसलिए ज़रूरी है इक दफ़ा और मिलना ये ज़मीन सब्ज़ रहे सहरा न होने पाए फूल खिलते रहें ज़ख़्म सिलते रहें सागर भरे ही रहें जंगल हरे ही रहें शामें ढलती रहें रुतें बदलती रहें! इसलिए ज़रूरी है हम फिर मिलें फिर मिलें...और आँसूं बहायें! #मैं