डिज़ायर

"डिज़ायर"

सुबह रंग का लिबास पहने
कच्ची इंटों के पार
उस दरीचे से झाँकती एक मासूम लड़की 
सरसों के खेत में 
उड़ती हुई उस तितली को देखती हुई 
कुछ सोचती है 
तभी शाम रंग का लिबास पहने आ जाते हो तुम! 
और अपने नर्म होंठ रख देते हो
उसकी पलकों पर और सोच हक़ीक़त में तब्दील हो जाती है


जौनसी

Comments

Popular posts from this blog

मैं शामों को अक्सर ही तुम्हारी आवाज़ मिस करती हूँ

'केसरिया बालमा' इक तस्वीर

मैं मिलूँगी फिर एक बार