रिक़वैस्ट
'रिक़वैस्ट'
पिछली मुलाक़ात के आँसूं सूख चुके
इसलिए
ज़रूरी है इक दफ़ा और मिलना
ये ज़मीन सब्ज़ रहे
सहरा न होने पाए
फूल खिलते रहें
ज़ख़्म सिलते रहें
सागर भरे ही रहें
जंगल हरे ही रहें
शामें ढलती रहें
रुतें बदलती रहें!
इसलिए
ज़रूरी है हम फिर मिलें
फिर मिलें...और आँसूं बहायें!
#मैं
Comments
Post a Comment