हिज्र का शहद
हिज्र का शहद
तुम्हारी यादें शहद की मक्खी जैसी हैं
कानों की लौ के पास भिनभिनाती हैं
मुझे काट के जाती हैं!
गर्दन पर कभी , कभी होंटों पर !!
ये उन लम्हो पे जा जा के उनका रस पीतीं हैं
जो हमने साथ गुज़ारे थे !
और बुन लेतीं हैं एक बड़ा सा छत्ता !
यादों का छत्ता !
जिसमें तुम्हारे हिज्र का शहद बनता है !
ये शहद मेरी नसों में बहता है लहू के साथ !
जाने मेरी कितनी ही बीमारियों का ईलाज है ये शहद
तुम्हारे हिज्र का शहद !!
कानों की लौ के पास भिनभिनाती हैं
मुझे काट के जाती हैं!
गर्दन पर कभी , कभी होंटों पर !!
ये उन लम्हो पे जा जा के उनका रस पीतीं हैं
जो हमने साथ गुज़ारे थे !
और बुन लेतीं हैं एक बड़ा सा छत्ता !
यादों का छत्ता !
जिसमें तुम्हारे हिज्र का शहद बनता है !
ये शहद मेरी नसों में बहता है लहू के साथ !
जाने मेरी कितनी ही बीमारियों का ईलाज है ये शहद
तुम्हारे हिज्र का शहद !!
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