हिज्र का शहद




हिज्र का शहद 

तुम्हारी यादें शहद की मक्खी जैसी हैं

कानों की लौ के पास भिनभिनाती हैं

मुझे काट के जाती हैं!

गर्दन पर कभी , कभी होंटों पर !!

ये उन लम्हो पे जा जा के उनका रस पीतीं हैं

जो हमने साथ गुज़ारे थे !

और बुन लेतीं हैं एक बड़ा सा छत्ता !

यादों का छत्ता !

जिसमें तुम्हारे हिज्र का शहद बनता है !

ये शहद मेरी नसों में बहता है लहू के साथ !

जाने मेरी कितनी ही बीमारियों का ईलाज है ये शहद

तुम्हारे हिज्र का शहद !!

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