एक बंजारन गेरुए रंग का दुप्पट्टा ओढ़े




एक बंजारन गेरुए रंग का दुप्पट्टा ओढ़े

सर पे माज़ी की गठरी उठाये

उसी गली में जाना चाहती है

जहां से वो ये गठरी ढो के लायी थी

ये बोझ वहीं खाली कर के आना चाहती है

और वहां से अपना कँगन लेके आएगी इस बार

वो कँगन जो उस गली के

दो मंजिला मकान के

ऊपर वाले कमरे में मेज़ पर छूट गया !

लेकिन हर बार कमरा अंदर से बंद मिलता है

और हताश बंजारन माज़ी की गठरी उठाये

फिरती रहती है ....फिरती रहेगी !

जब तक उम्र का शहर पार नहीं हो जाता ....

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