'कातिब' क्यों कहते थे तुम



'कातिब' 

क्यों कहते थे तुम

ख़्वाब में कोई पढ़ नहीं सकता

कि पढ़ना और ख़्वाब देखना

दिमाग के अलग अलग हिस्सों के काम हैं

तो फिर क्यों ख़्वाब में

तुम एक सब्ज़ दीवार पर सुर्ख़ सियाही से

मेरा और अपना नाम लिखते हो?

कैसे मैं पढ़ लेती हूँ

काश! ये दीवार ही किस्मत होती मेरी

काश!

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