उनकी आवाज़ के सिक्के



उनकी आवाज़ के सिक्के

तन्हाई के कासे में यूँ छनछनाये

मानो संगीत हो, राग हो

जिसपर मन यूँ नाचता है, जैसे जोगन

जैसे कोई अल्हड़ नदी

खेलती कूदती बहती हो

रात दो बजे याद की हवा

थकी जोगन के पसीने से भीगे

बदन को यूँ सहलाती है

जैसे ज़ख़्म पे मरहम लगाए कोई

ये बस तसव्वुर है, बस तसव्वुर!

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